हिन्दू धर्मशास्त्रो एवं हिन्दूजाति निर्णय के अन्वेषणकर्ता श्रोत्रिय पंडित छोटेलाल शर्मा, जिन्हे तत्कालीन भारत सरकार ने इस कार्य के लिये सन् 1901 में नियुक्त किया था, ने अपनी खोज और शोध को एक ग्रन्थ के रूप् में सन् 1928 में प्रकाशित किया था । इस ग्रन्थ में उत्तर-प्रदेष (तत्कालीन युक्त प्रदेश) के अन्दर विद्यामान समस्त जाति-धर्म के लोगों के बारे सप्रमाणित उल्लेख किया गया था । इस पुस्तक में अर्कवंशी क्षत्रियों के बारे में शर्मा जी कहते हैं-
“यह एक कृषि करने वाली जाति है। विषेश रूप से ये लोग अवध में है परन्तु युक्त प्रदेश में भी कही-कही पाये जाते है । इस जाति की उत्पत्ति विषयक अन्वेषण करने से ऐसा निश्चय हुआ है कि अर्क नाम सूर्य और वंश नाम संतति अर्थात जो सूर्यवंशी थे वो लोग ही अर्कवंशी कहलाये गये। जिन सूर्यवंशियो के राज्य व धनबल रहा वे सूर्यवंशी राजपूत कहाते रहै और जिन्हे विपत्तिवश प्राणरक्षार्थ इधर-उधर भागना पड़ा वे विचारे कृषि आदि के धन्धे मे लगकर कही
अर्कवंशी और कही अरक और अरख कहाने लगे । इतिहासो से पता चलता है कि हरदोई जिले में किसी समय इनका प्रभुत्व था ।“
मुरादाबाद निवासी विद्यावारिद पंडित ज्वाला मिश्र द्वारा रचित ऐतिहासिक शोध ग्रन्थ ‘जाति भाष्कर’ में अर्कवंशी क्षत्रियो का वर्णन क्षत्रिय खण्ड में किया गया है। इसके अनुसार अर्कवंशी जाति सूर्यवंशी क्षत्रिय है और अब यह अरख कहाते है । मि. क्रुक साहब ने सूर्य उपासक तिलोकचन्द के वश का नाम अर्कवंश लिखा है ।
ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘क्षत्रिय वंशार्णव’ के लेखक, ऐतिहासिक एवं अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के महामंत्री एवं वरिष्ठ इतिहासकार श्री भगवानदीन सिंह सोमवंशी के अनुुसार अर्कवंशी क्षत्रिय मूलरूप से सूर्यवंशी क्षत्रिय है, जो कि ‘अर्क’ ,’अरक’,’ अरख’ आदि नामों से भी जाने जाते है । अर्कवंशी क्षत्रिय के विषय में वे अपने ग्रन्थ के पृ. 411-412 पर लिखते है - यह सूर्यवंशी की शाखा रघुवंश जिसमें रामचन्द्र और रामपुत्र कुश हुए । कुश के वंशजो की एक शाखा शाक्यवश चली, जिसमें शाक्यवंशी गौतम तथा गौतमबुद्ध हुए जो शाक्यवंशी शुद्धोधन के पुत्र थे । ग्रन्थ पृ. 413 पर आगे लिखता है- “अर्कवंश का इतिहास बहुत प्राचीन है और गौरवशाली भी । … अर्कवंश प्राचीन राजवंश है, इनके राज्य तथा ठिकाने हरदोई में सण्डीला (अवध गजेटियर), बहराइच का अकोनी ‘बहराइच गजेटियर’, इकौना , अकौना (चीनी यात्री व्हेनसांग)... इसके अतिरिक्त अर्कवंश का राज्य दांतली, बेनीगंज, नर्वल, साढ़ सलमेनपुर, पडरी(उन्नाव), खागा,(फतेहपुर), अयाह आदि में रहा है।
भट्ट अर्क-
अर्कवंशी राजा आर्यक के अनेक वंशधरों में एक वीर राजा भट्ट अर्क हुए है। उन्होंने गुजरात(सौराष्ट्र) में पुनः अर्कवंशी राज्य की स्थापना की । कुछ इतिहासकारों ने उन्हे मैत्रकवशी बताया है। पर वास्तव में वह अर्कमण्डल में सम्मिलित अर्कवंशी क्षत्रिय थे । जिन्हे उक्त संघ के अन्य क्षत्रिय मित्रवंशी (अर्थात सूर्यवंशी) कहकर पुकारते थे। मित्रवंश को ही सम्भवतः इतिहासकारो ने मैत्रक नाम दे दिया है। राजा भट्ट सूर्य के उपासक थे तथा उनके शासनकाल में वहा सूर्य पूजा का अत्याधिक प्रचार-प्रसार हुआ । गुजरात के कई हिस्सो में अभी सूर्य मंदिर पाए जाते है । भट्टार्क के एक उत्ताराधिकारी राजा ने पूर्वी अपने पितामह के नाम पर भट्टनगर की स्थापना की, जो अब भटिण्डा के नाम से जाना जाता है।
अर्कवंशी क्षत्रियों के भेद –
अर्कवंशी क्षत्रियों के अन्य मुख्य भेद है - खंगार, गौड, वाछल (वाछिल,वच्छ,गोती), अघिराज, परिहार, गुहिलौत, सिसौदिया, गोहिल, शाक्यवंशी, पुष्यभूति, पुश्यभूति, तिलोकचंदी, नागवंशी, उदमतिया, कोटवार, आहडि़या, मैत्रक, ख्रड़गवंशी इत्यादि ।
क्षात्र धर्म-
सच्चा क्षत्रिय वही है जो हर अवस्था में क्षात्र धर्म का पालन करता है । क्षात्र धर्म का पालन क्षत्रियोगिता गुणो के विकास द्वारा ही हो सकता है । अतः प्रत्येक क्षत्रिय में इन गुणों का होना अत्यन्त आवश्यक है । सर्वमान्य क्षत्रियोचित गुण निम्नलिखित है:- स्वाभिमान,अध्ययनशीलता, राष्ट्रप्रेम, संघर्श क्षमता एवं स्वालम्बन, धैर्य एवं साहस, न्यायाप्रिता, राजनैतिक चेतना।
अर्कवंशी भाइयों, विपरीत परिस्थियों एवं समय के कुचक्र से भयभीत मत होइये। अच्छे समय के लिये संगठित होकर प्रयासरत और संघर्षरत रहिये, अन्यथा सामाजिक उद्धार एवं राष्ट्रहित एक कल्पना मात्र बन कर रह जायेगां ।
जय श्री राम... जय अर्कवंश.....
“यह एक कृषि करने वाली जाति है। विषेश रूप से ये लोग अवध में है परन्तु युक्त प्रदेश में भी कही-कही पाये जाते है । इस जाति की उत्पत्ति विषयक अन्वेषण करने से ऐसा निश्चय हुआ है कि अर्क नाम सूर्य और वंश नाम संतति अर्थात जो सूर्यवंशी थे वो लोग ही अर्कवंशी कहलाये गये। जिन सूर्यवंशियो के राज्य व धनबल रहा वे सूर्यवंशी राजपूत कहाते रहै और जिन्हे विपत्तिवश प्राणरक्षार्थ इधर-उधर भागना पड़ा वे विचारे कृषि आदि के धन्धे मे लगकर कही
अर्कवंशी और कही अरक और अरख कहाने लगे । इतिहासो से पता चलता है कि हरदोई जिले में किसी समय इनका प्रभुत्व था ।“
मुरादाबाद निवासी विद्यावारिद पंडित ज्वाला मिश्र द्वारा रचित ऐतिहासिक शोध ग्रन्थ ‘जाति भाष्कर’ में अर्कवंशी क्षत्रियो का वर्णन क्षत्रिय खण्ड में किया गया है। इसके अनुसार अर्कवंशी जाति सूर्यवंशी क्षत्रिय है और अब यह अरख कहाते है । मि. क्रुक साहब ने सूर्य उपासक तिलोकचन्द के वश का नाम अर्कवंश लिखा है ।
ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘क्षत्रिय वंशार्णव’ के लेखक, ऐतिहासिक एवं अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के महामंत्री एवं वरिष्ठ इतिहासकार श्री भगवानदीन सिंह सोमवंशी के अनुुसार अर्कवंशी क्षत्रिय मूलरूप से सूर्यवंशी क्षत्रिय है, जो कि ‘अर्क’ ,’अरक’,’ अरख’ आदि नामों से भी जाने जाते है । अर्कवंशी क्षत्रिय के विषय में वे अपने ग्रन्थ के पृ. 411-412 पर लिखते है - यह सूर्यवंशी की शाखा रघुवंश जिसमें रामचन्द्र और रामपुत्र कुश हुए । कुश के वंशजो की एक शाखा शाक्यवश चली, जिसमें शाक्यवंशी गौतम तथा गौतमबुद्ध हुए जो शाक्यवंशी शुद्धोधन के पुत्र थे । ग्रन्थ पृ. 413 पर आगे लिखता है- “अर्कवंश का इतिहास बहुत प्राचीन है और गौरवशाली भी । … अर्कवंश प्राचीन राजवंश है, इनके राज्य तथा ठिकाने हरदोई में सण्डीला (अवध गजेटियर), बहराइच का अकोनी ‘बहराइच गजेटियर’, इकौना , अकौना (चीनी यात्री व्हेनसांग)... इसके अतिरिक्त अर्कवंश का राज्य दांतली, बेनीगंज, नर्वल, साढ़ सलमेनपुर, पडरी(उन्नाव), खागा,(फतेहपुर), अयाह आदि में रहा है।
भट्ट अर्क-
अर्कवंशी राजा आर्यक के अनेक वंशधरों में एक वीर राजा भट्ट अर्क हुए है। उन्होंने गुजरात(सौराष्ट्र) में पुनः अर्कवंशी राज्य की स्थापना की । कुछ इतिहासकारों ने उन्हे मैत्रकवशी बताया है। पर वास्तव में वह अर्कमण्डल में सम्मिलित अर्कवंशी क्षत्रिय थे । जिन्हे उक्त संघ के अन्य क्षत्रिय मित्रवंशी (अर्थात सूर्यवंशी) कहकर पुकारते थे। मित्रवंश को ही सम्भवतः इतिहासकारो ने मैत्रक नाम दे दिया है। राजा भट्ट सूर्य के उपासक थे तथा उनके शासनकाल में वहा सूर्य पूजा का अत्याधिक प्रचार-प्रसार हुआ । गुजरात के कई हिस्सो में अभी सूर्य मंदिर पाए जाते है । भट्टार्क के एक उत्ताराधिकारी राजा ने पूर्वी अपने पितामह के नाम पर भट्टनगर की स्थापना की, जो अब भटिण्डा के नाम से जाना जाता है।
अर्कवंशी क्षत्रियों के भेद –
अर्कवंशी क्षत्रियों के अन्य मुख्य भेद है - खंगार, गौड, वाछल (वाछिल,वच्छ,गोती), अघिराज, परिहार, गुहिलौत, सिसौदिया, गोहिल, शाक्यवंशी, पुष्यभूति, पुश्यभूति, तिलोकचंदी, नागवंशी, उदमतिया, कोटवार, आहडि़या, मैत्रक, ख्रड़गवंशी इत्यादि ।
क्षात्र धर्म-
सच्चा क्षत्रिय वही है जो हर अवस्था में क्षात्र धर्म का पालन करता है । क्षात्र धर्म का पालन क्षत्रियोगिता गुणो के विकास द्वारा ही हो सकता है । अतः प्रत्येक क्षत्रिय में इन गुणों का होना अत्यन्त आवश्यक है । सर्वमान्य क्षत्रियोचित गुण निम्नलिखित है:- स्वाभिमान,अध्ययनशीलता, राष्ट्रप्रेम, संघर्श क्षमता एवं स्वालम्बन, धैर्य एवं साहस, न्यायाप्रिता, राजनैतिक चेतना।
अर्कवंशी भाइयों, विपरीत परिस्थियों एवं समय के कुचक्र से भयभीत मत होइये। अच्छे समय के लिये संगठित होकर प्रयासरत और संघर्षरत रहिये, अन्यथा सामाजिक उद्धार एवं राष्ट्रहित एक कल्पना मात्र बन कर रह जायेगां ।
जय श्री राम... जय अर्कवंश.....
bhai ji kya aap apna number share kar sakte hai mujhe kuch jaanakri chahiye tha
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