सूर्यवंश /अर्कवंश का संक्षिप्त परिचय
कुक्षि के कुल में भरत से आगे चलकर, सगर, भागीरथ, रघु, अम्बरीष, ययाति, नाभाग, दशरथ और भगवान राम हुए। उक्त सभी ने अयोध्या पर राज्य किया। पहले अयोध्या भारतवर्ष की राजधानी हुआ करती थी बाद में हस्तीनापुर हो गई।इक्ष्वाकु के दूसरे पुत्र निमि मिथिला के राजा थे। इसी इक्ष्वाकु वंश में बहुत आगे चलकर राजा जनक हुए। राजा निमि के गुरु थे- ऋषि वसिष्ठ। निमि जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर बनें।इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुंची। राजा सगर के दो स्त्रियां थीं-प्रभा और भानुमति। प्रभा ने और्वाग्नि से साठ हजार पुत्र और भानुमति केवल एक पुत्र की प्राप्ति की जिसका नाम असमंजस था।असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतार था। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।रघु कुल : सूर्य वशं को आगे बढ़ाया रघु कुल ने। रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुए। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुए और दशरथ के ये चार पुत्र- राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हैं। राम के पुत्र हुए लव और कुश।राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ। जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की। जिसमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।जिन सूर्यवंशी क्षत्रियों ने 'सूर्य' के पर्यायवाची शब्द 'अर्क' के नाम से अपनी पहचान स्थापित की, वे ही कालांतर में 'अर्कवंशी क्षत्रिय' कहलाये। अर्कवंशी क्षत्रिय वास्तव में सूर्यवंशी क्षत्रिय ही थे जो अपने कुल-देवता (पितामह) 'सूर्य' को उनके 'अर्क' स्वरूप में पूजते रहे। कालचक्र के साथ अनेकों बार जीतते-हारते अर्कवंशी क्षत्रिय अपने बुरे वक्त में 'अर्कवंशी' से 'अर्क', फिर 'अरक' कहलाने लगे। स्थानीय बोलचाल की भाषा में 'अर्क' शब्द बिगड़कर 'अरक' और धीरे-धीरे 'अरख' हो गया। इसी प्रकार 'मित्रवंशी' शब्द धीरे-धीरे बिगड़कर 'मैत्रक' हो गया। इतिहास-अर्कवंशी क्षत्रियों का इतिहास अत्यन्त गौरवशाली है। 'अर्कवंश' का इतिहास 'सूर्यवंश' के इतिहास का अभिन्न हिस्सा है और 'अर्कवंश' के इतिहास को 'सूर्यवंश' के इतिहास से अलग नहीं ठहराया जा सकता। अर्कवंश के महानुभावों में भगवान् रामचन्द्रजी, अर्कबंधू गौतम बुद्ध, महाराजा तक्षक, सम्राट प्रद्योत, सम्राट बालार्क, सम्राट नन्दिवर्धन आदि प्रमुख थे। वनवास को जाने से पहले 'अर्कवंश शिरोमणि’ रामचंद्र जी ने निम्न मंत्र का उच्चारण करके अपने कुल-देवता 'सूर्य' ('अर्क') का आवाहन किया था- 'ॐ भूर्भुवः स्वः कलिंगदेशोद्भव काश्यप गोत्र रक्त वर्ण भो अर्क, इहागच्छ इह तिष्ठ अर्काय नमः'लंका जाने हेतु समुद्र पर विशाल सेतु बाँधने से पहले श्रीराम ने समुद्र तट पर 'शिवलिंग' स्थापित करके भगवान् शिव की आराधना की थी और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस घटना के बाद से सूर्योपासक अर्कवंशी क्षत्रियों में 'शिव-उपासना' का प्रचलन भी बढ़ा. मध्यकाल के अर्कवंशी क्षत्रिय महापुरुषों में महाराजा कनकसेन (जिनसे चित्तौड़ के सूर्यवंशी राजवंश की उत्पत्ति हुयी), सूर्योपासक महाराजा भट्ट-अर्क (जिन्होंने गुजरात में सूर्य-उपासना का प्रचालन बढ़ाया), सूर्योपासक सम्राट हर्षवर्धन, सूर्योपासक महाराजाधिराज तिलोकचंद अर्कवंशी (जिन्होंने सन ९१८ ईसवीं में राजा विक्रमपाल को हराकर दिल्ली पर अपना राज्य स्थापित किया था), महाराजा खड़गसेन (जिन्होंने मध्यकाल में अवध के दोआबा क्षेत्र पर राज किया और खागा नगर की स्थापना की), महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी (जिन्होंने उत्तर-प्रदेश के हरदोई जिले में आने वाले संडीला नगर की स्थापना की) तथा महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी (जिन्होंने मलिहाबाद नगर स्थापित किया), इत्यादि प्रमुख हैं. प्राचीन काल से मध्यकाल तक अर्कवंशी क्षत्रियों ने अवध के एक विशाल हिस्से, जैसे संडीला, मलीहाबाद, खागा, अयाह (फतेहपुर), पडरी (उन्नाव), साढ़-सलेमपुर (कानपुर), सिंगरुर (इलाहबाद), अरखा (रायबरेली), बहराइच, इत्यादि पर अपना प्रभुत्व कायम रखा. कहा जाता है कि अर्कवंशी क्षत्रिय एक समय इतने शशक्त थे कि उन्होंने आर्यावर्त में दशाश्वमेघ यज्ञ करवाकर अपनी शक्ति प्रदर्शित की थी और किसी भी तत्कालीन राजवंश में उन्हें ललकारने की हिम्मत नहीं हुयी. फतेहपुर (अयाह) में अर्कवंशी क्षत्रियों द्वारा निर्मित एक प्राचीन दुर्ग आज भी खँडहर के रूप में मौजूद है और अर्कवंशी क्षत्रियों की गौरवशाली गाथा सुना रहा है....
"अर्ककुल शिरोमणि श्री राम"
सूर्यवंश का वंश
(सूर्यवंशम,अर्कवंशम या सौर वंश ) आर्यावर्त का प्राचीन पौराणिक वंश है ।
अयोध्या, अवध व उत्तर प्रदेश के सूर्यवंशी राजाओ ने द्वापर युग समाप्त हो जाने के पश्चात जब भगवान् श्री हरि विष्णु ने बुद्ध अवतार लिया तो उसका एकमात्र उद्देश्य यही था की ,
जिस प्रकार से मनुष्यो में हिंसा की भावना बढ़ रही है और वह अपने वैदिक यज्ञो के कार्यो में भी बलि प्रथा को अपना रहे है या उनसे इस प्रकार के कार्यो को करवाने के लिए विवश किया जाता हो या पूर्वजो की परम्परा याद दिलाई जाती हो जिनसे अनावश्यक ही लोगो में हिंसा की भावना जाग्रत होने लगी थी और पशुओं पर अत्याचार भी होने लगे थे तथा ऐसे ही कई अंधविश्वासों को समाप्त करने के लिए बुद्ध अवतार लिया था
और एक नए युग में मनुष्यो को अहिंसापूर्वक शांति से रहने का उदाहरण मानव समाज के समक्ष रखा था ।
चूँकि भगवान बुद्ध ने सूर्यवंश के शाक्य कुल में जन्म लिया था तो उनकी दी हुई महत्वपूर्ण शिक्षा को आगे बढ़ाने और यज्ञो में से पशु बलि को समाप्त करने के लिए " सूर्यवंशी राजाओ ने देव भाषा " संस्कृत " के सूर्य रूप अर्थात " अर्क " रूप को धारण किया और अवध, अयोध्या के समस्त सूर्यवंश एक नए युग (कलियुग) में अर्कवंश के नाम से सम्बोधित सम्बोधित किया जाने लगा ।
भगवन बुद्ध के अन्य नाम है - शाक्य सिंह, अर्कबन्धु , गौतमीपुत्र , शाक्यमुनि।
"अर्कबन्धु" का अर्थ होता है सूर्य के कुल से सम्बन्ध रखने वाला।
अतः भगवान् बुद्ध के दिए हुए संस्कारो का पालन सूर्यवंशी राजाओ ने अपने अर्कवंशी नाम के रूप में किया ।
अर्कवंशी राजाओ ने अवध के विशाल क्षेत्र पर शासन किया और उसके उपलक्ष्य में दशाश्वमेध यज्ञ भी किये और इन सभी यज्ञो में किसी भी प्रकार की पशु बलि नहीं दी गई थी और यज्ञ की इसी प्रक्रिया का पालन सम्पूर्ण अर्कवंश में होने लगा , जिसके फलस्वरूप अर्कवंशी राजाओ ने समय -२ पर दशाश्वमेध यज्ञ किये ।
जिसमे खागा नगर की स्थापना करने वाले महाराजा खडग सेन अर्कवंशी का नाम प्रसिद्ध है ।
महारानी महादानी भीमादेवी------->>>>
महाराजा इक्ष्वाकु के कुल में हे सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र ने जन्म लिया , और
उन्होंने अपना सम्पूर्ण राजपाट विश्वामित्र को दान में दे दिया था ।
ऐसी ही घटना इसी कुल में पुनः घटी जब अर्कवंश के महाराजा गोविन्द चन्द्र
अर्कवंशी ने इंद्रप्रस्थ पर २१ वर्ष ७ माह १२ दिवस तक शासन किया
परन्तु महाराजा गोविन्द चन्द्र अर्कवंशी की मृत्यु हो जाने के पश्चात उनकी
पत्नी महारानी भीमादेवी ने अपना सारा सम्राज्य अपने आध्यात्मिक गुरु
हरगोविन्द को दान में दे दिया और इस प्रकार से उन्होंने अपने कुल की दान
धर्म की परम्परा का निर्वाहन किया ।
महाराजा खडग सेन अर्कवंशी------->>>>
इन्होने फतेहपुर के खागा नगर की स्थापना की थी । महाराजा खडग सेन महाराजा दलपतसेन के पुत्र थे और महाराजा दलपतसेंन महाराजा कनकसेन के परिवार की रक्त पीढ़ी से सम्बन्ध रखते है और महाराजा कनकसेन महाराजा कुश की रक्त पीढ़ी से सम्बन्ध रखते है महाराजा कुश भगवान श्री राम के ज्येष्ठ पुत्र है । महाराजा खडग सेन अर्कवंशी ने अपने कुल की परम्परा अनुसार दशाश्वमेघ यज्ञ भी किया था । विदेशी आक्रमणकारियों अंग्रेजो एवं मुस्लिम ने इनसे सम्बंधित समस्त जानकारियों को समाप्त करने का पूरा प्रयास किया परन्तु इस नगर के निवासी अभी भी उनकी वीरता और शासन नीति के लिए स्मरण करते है।
महाराजा तिलोकचंद्र सिंह अर्कवंशी
इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) पर अर्कवंशी महाराजाओ का शासन
महाराजा तिलोकचंद अर्कवंशी ने राजा विक्रमपाल को पराजित करके इंद्रप्रस्थ पर शासन किया , जिसके फलस्वरूप इनकी ९ पढियो ने इंद्रप्रस्थ पर शासन किया जो इस प्रकार है -
शासक वर्ष माह दिन
१- महाराजा तिलोकचंद अर्कवंशी ५४ २ १०
२- महाराजा विक्रमचंद अर्कवंशी १२ ७ १२
३ - महाराजा मानकचंद अर्कवंशी १० - ५
४ -महाराजा रामचंद अर्कवंशी १३ ११ ८
५ - महाराजा हरि चंद अर्कवंशी १४ ९ २४
६ - महाराजा कल्याण चंद अर्कवंशी १० ५ ४
७ - महाराजा भीमचंद अर्कवंशी १६ २ ९
८ - महाराजा लोकचंद अर्कवंशी २६ ३ २२
९ - महाराजा गोविन्द चंद अर्कवंशी २१ ७ १२
१० - महारानी भीमा देवी १ - -
और इनके बाद
सण्डीला निर्माता
महाराजा साल्हिय सिंह अर्कवंशी
और
मलिहाबाद निर्माता
महाराजा मल्हिय सिंह अर्कवंशी
अर्कवंश की प्रशाखा " भारशिव "
अर्कवंश की एक प्रशाखा है " भारशिव "। वैदिक काल में जिन अर्कवंशी राजाओ ने भगवान् शिव को प्रसन्न करके अपनी भक्ति से यह उपाधि पाई थी व्ही राजा भारशिव कहलाए । इन्होने भगवान् शिव को प्रसन्न करने करने के लिए अपने कंधो पर विशाल शिवलिंग धारण किया और तपस्या की इनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर इन भक्तवीरो को भारशिव उपाधि प्राप्त हुई । प्रतीक के स्वरुप में यह अपने गर्दन में शिवलिंग की माला धारण करते थे , भारशिव योद्धा इतने शसक्त थे की इन्होने दशाश्वमेघ यज्ञ भी किये थे ।
वैदिक काल तक भारशिव (अर्कवंश) से सम्बन्ध रखते थे परन्तु समय के साथ भारशिव योद्धा (नागवंश) से सम्बन्ध रखने लगे चूँकि नागवंश -सूर्यवंश की उपशाखा है जिस कारण इनमे वैवाहिक सम्बन्ध भी विद्यमान है स्वयं भगवान् श्री राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश का विवाह नागवंश की राजकुमारी से हुआ था अतः भारशिव राजाओ के आराध्य देव भागवान शिव है और नागवंश के आराध्यदेव भी भगवन शिव है जिस कारण इन दोनो कुलो में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होने के कारण भारशिव की उपाधि को नागवंश के राजाओ ने आगे बढ़ाया इसी भारशिव के (नागवंश) में कई महान राजाओ ने जिनमे महाराजा भवनाग , महाराजा नवनाग आदि प्रसिद्ध है ।
इसी भारशिव के ( नागवंश ) में राष्ट्र रक्षक महाराजा सुहलध्वज भारशिव ने जन्म लिया और बहराइच के युद्ध में १,५०,००० (डेढ़ लाख ) से अधिक इस्लामी जिहादियों की गर्दन गाजर मूली की तरह काट डाली और सम्पूर्ण देश की रक्षा की यह युद्ध १०३४ ईस्वी में बहराइच में लड़ा गया था जिसमे १७ राजाओ ने महाराजा सुहलध्वज का साथ दिया था इस घटना का वर्णन मध्यकालीन ग्रन्थ जैमिनी में इसका उल्लेख है इस युद्ध के पश्चात विश्व में भारत के राजाओ का ऐसा आतंक व्याप्त हुआ था की अगले ३०० वर्षो तक किसी इस्लामी आक्रमणकारी ने भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया । इनके वैवाहिक सम्बन्ध वाकाटक वंश से थे और तत्कालीन राजवंशो से भी इनके वैवाहिक सम्बन्ध थे ।
सूर्यवंश सतयुग में इक्ष्वाकुवंश के नाम से जाना गया और त्रेतायुग में रघुवंश के नाम से जाना गया द्वापर युग में अपने मूलनाम सूर्यवंश से जाना गया और कलियुग में अर्कवंश के नाम से जाना गया और भविष्य में जाना जायेगा। जय सियापति राम चन्द्र की जय
कुक्षि के कुल में भरत से आगे चलकर, सगर, भागीरथ, रघु, अम्बरीष, ययाति, नाभाग, दशरथ और भगवान राम हुए। उक्त सभी ने अयोध्या पर राज्य किया। पहले अयोध्या भारतवर्ष की राजधानी हुआ करती थी बाद में हस्तीनापुर हो गई।इक्ष्वाकु के दूसरे पुत्र निमि मिथिला के राजा थे। इसी इक्ष्वाकु वंश में बहुत आगे चलकर राजा जनक हुए। राजा निमि के गुरु थे- ऋषि वसिष्ठ। निमि जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर बनें।इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुंची। राजा सगर के दो स्त्रियां थीं-प्रभा और भानुमति। प्रभा ने और्वाग्नि से साठ हजार पुत्र और भानुमति केवल एक पुत्र की प्राप्ति की जिसका नाम असमंजस था।असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतार था। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया। तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।रघु कुल : सूर्य वशं को आगे बढ़ाया रघु कुल ने। रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुए। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र दशरथ हुए और दशरथ के ये चार पुत्र- राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हैं। राम के पुत्र हुए लव और कुश।राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ। जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की। जिसमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला।जिन सूर्यवंशी क्षत्रियों ने 'सूर्य' के पर्यायवाची शब्द 'अर्क' के नाम से अपनी पहचान स्थापित की, वे ही कालांतर में 'अर्कवंशी क्षत्रिय' कहलाये। अर्कवंशी क्षत्रिय वास्तव में सूर्यवंशी क्षत्रिय ही थे जो अपने कुल-देवता (पितामह) 'सूर्य' को उनके 'अर्क' स्वरूप में पूजते रहे। कालचक्र के साथ अनेकों बार जीतते-हारते अर्कवंशी क्षत्रिय अपने बुरे वक्त में 'अर्कवंशी' से 'अर्क', फिर 'अरक' कहलाने लगे। स्थानीय बोलचाल की भाषा में 'अर्क' शब्द बिगड़कर 'अरक' और धीरे-धीरे 'अरख' हो गया। इसी प्रकार 'मित्रवंशी' शब्द धीरे-धीरे बिगड़कर 'मैत्रक' हो गया। इतिहास-अर्कवंशी क्षत्रियों का इतिहास अत्यन्त गौरवशाली है। 'अर्कवंश' का इतिहास 'सूर्यवंश' के इतिहास का अभिन्न हिस्सा है और 'अर्कवंश' के इतिहास को 'सूर्यवंश' के इतिहास से अलग नहीं ठहराया जा सकता। अर्कवंश के महानुभावों में भगवान् रामचन्द्रजी, अर्कबंधू गौतम बुद्ध, महाराजा तक्षक, सम्राट प्रद्योत, सम्राट बालार्क, सम्राट नन्दिवर्धन आदि प्रमुख थे। वनवास को जाने से पहले 'अर्कवंश शिरोमणि’ रामचंद्र जी ने निम्न मंत्र का उच्चारण करके अपने कुल-देवता 'सूर्य' ('अर्क') का आवाहन किया था- 'ॐ भूर्भुवः स्वः कलिंगदेशोद्भव काश्यप गोत्र रक्त वर्ण भो अर्क, इहागच्छ इह तिष्ठ अर्काय नमः'लंका जाने हेतु समुद्र पर विशाल सेतु बाँधने से पहले श्रीराम ने समुद्र तट पर 'शिवलिंग' स्थापित करके भगवान् शिव की आराधना की थी और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस घटना के बाद से सूर्योपासक अर्कवंशी क्षत्रियों में 'शिव-उपासना' का प्रचलन भी बढ़ा. मध्यकाल के अर्कवंशी क्षत्रिय महापुरुषों में महाराजा कनकसेन (जिनसे चित्तौड़ के सूर्यवंशी राजवंश की उत्पत्ति हुयी), सूर्योपासक महाराजा भट्ट-अर्क (जिन्होंने गुजरात में सूर्य-उपासना का प्रचालन बढ़ाया), सूर्योपासक सम्राट हर्षवर्धन, सूर्योपासक महाराजाधिराज तिलोकचंद अर्कवंशी (जिन्होंने सन ९१८ ईसवीं में राजा विक्रमपाल को हराकर दिल्ली पर अपना राज्य स्थापित किया था), महाराजा खड़गसेन (जिन्होंने मध्यकाल में अवध के दोआबा क्षेत्र पर राज किया और खागा नगर की स्थापना की), महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी (जिन्होंने उत्तर-प्रदेश के हरदोई जिले में आने वाले संडीला नगर की स्थापना की) तथा महाराजा मल्हीय सिंह अर्कवंशी (जिन्होंने मलिहाबाद नगर स्थापित किया), इत्यादि प्रमुख हैं. प्राचीन काल से मध्यकाल तक अर्कवंशी क्षत्रियों ने अवध के एक विशाल हिस्से, जैसे संडीला, मलीहाबाद, खागा, अयाह (फतेहपुर), पडरी (उन्नाव), साढ़-सलेमपुर (कानपुर), सिंगरुर (इलाहबाद), अरखा (रायबरेली), बहराइच, इत्यादि पर अपना प्रभुत्व कायम रखा. कहा जाता है कि अर्कवंशी क्षत्रिय एक समय इतने शशक्त थे कि उन्होंने आर्यावर्त में दशाश्वमेघ यज्ञ करवाकर अपनी शक्ति प्रदर्शित की थी और किसी भी तत्कालीन राजवंश में उन्हें ललकारने की हिम्मत नहीं हुयी. फतेहपुर (अयाह) में अर्कवंशी क्षत्रियों द्वारा निर्मित एक प्राचीन दुर्ग आज भी खँडहर के रूप में मौजूद है और अर्कवंशी क्षत्रियों की गौरवशाली गाथा सुना रहा है....
"अर्ककुल शिरोमणि श्री राम"
सूर्यवंश का वंश
(सूर्यवंशम,अर्कवंशम या सौर वंश ) आर्यावर्त का प्राचीन पौराणिक वंश है ।
अयोध्या, अवध व उत्तर प्रदेश के सूर्यवंशी राजाओ ने द्वापर युग समाप्त हो जाने के पश्चात जब भगवान् श्री हरि विष्णु ने बुद्ध अवतार लिया तो उसका एकमात्र उद्देश्य यही था की ,
जिस प्रकार से मनुष्यो में हिंसा की भावना बढ़ रही है और वह अपने वैदिक यज्ञो के कार्यो में भी बलि प्रथा को अपना रहे है या उनसे इस प्रकार के कार्यो को करवाने के लिए विवश किया जाता हो या पूर्वजो की परम्परा याद दिलाई जाती हो जिनसे अनावश्यक ही लोगो में हिंसा की भावना जाग्रत होने लगी थी और पशुओं पर अत्याचार भी होने लगे थे तथा ऐसे ही कई अंधविश्वासों को समाप्त करने के लिए बुद्ध अवतार लिया था
और एक नए युग में मनुष्यो को अहिंसापूर्वक शांति से रहने का उदाहरण मानव समाज के समक्ष रखा था ।
चूँकि भगवान बुद्ध ने सूर्यवंश के शाक्य कुल में जन्म लिया था तो उनकी दी हुई महत्वपूर्ण शिक्षा को आगे बढ़ाने और यज्ञो में से पशु बलि को समाप्त करने के लिए " सूर्यवंशी राजाओ ने देव भाषा " संस्कृत " के सूर्य रूप अर्थात " अर्क " रूप को धारण किया और अवध, अयोध्या के समस्त सूर्यवंश एक नए युग (कलियुग) में अर्कवंश के नाम से सम्बोधित सम्बोधित किया जाने लगा ।
भगवन बुद्ध के अन्य नाम है - शाक्य सिंह, अर्कबन्धु , गौतमीपुत्र , शाक्यमुनि।
"अर्कबन्धु" का अर्थ होता है सूर्य के कुल से सम्बन्ध रखने वाला।
अतः भगवान् बुद्ध के दिए हुए संस्कारो का पालन सूर्यवंशी राजाओ ने अपने अर्कवंशी नाम के रूप में किया ।
अर्कवंशी राजाओ ने अवध के विशाल क्षेत्र पर शासन किया और उसके उपलक्ष्य में दशाश्वमेध यज्ञ भी किये और इन सभी यज्ञो में किसी भी प्रकार की पशु बलि नहीं दी गई थी और यज्ञ की इसी प्रक्रिया का पालन सम्पूर्ण अर्कवंश में होने लगा , जिसके फलस्वरूप अर्कवंशी राजाओ ने समय -२ पर दशाश्वमेध यज्ञ किये ।
जिसमे खागा नगर की स्थापना करने वाले महाराजा खडग सेन अर्कवंशी का नाम प्रसिद्ध है ।
महारानी महादानी भीमादेवी------->>>>
महाराजा इक्ष्वाकु के कुल में हे सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र ने जन्म लिया , और
उन्होंने अपना सम्पूर्ण राजपाट विश्वामित्र को दान में दे दिया था ।
ऐसी ही घटना इसी कुल में पुनः घटी जब अर्कवंश के महाराजा गोविन्द चन्द्र
अर्कवंशी ने इंद्रप्रस्थ पर २१ वर्ष ७ माह १२ दिवस तक शासन किया
परन्तु महाराजा गोविन्द चन्द्र अर्कवंशी की मृत्यु हो जाने के पश्चात उनकी
पत्नी महारानी भीमादेवी ने अपना सारा सम्राज्य अपने आध्यात्मिक गुरु
हरगोविन्द को दान में दे दिया और इस प्रकार से उन्होंने अपने कुल की दान
धर्म की परम्परा का निर्वाहन किया ।
महाराजा खडग सेन अर्कवंशी------->>>>
इन्होने फतेहपुर के खागा नगर की स्थापना की थी । महाराजा खडग सेन महाराजा दलपतसेन के पुत्र थे और महाराजा दलपतसेंन महाराजा कनकसेन के परिवार की रक्त पीढ़ी से सम्बन्ध रखते है और महाराजा कनकसेन महाराजा कुश की रक्त पीढ़ी से सम्बन्ध रखते है महाराजा कुश भगवान श्री राम के ज्येष्ठ पुत्र है । महाराजा खडग सेन अर्कवंशी ने अपने कुल की परम्परा अनुसार दशाश्वमेघ यज्ञ भी किया था । विदेशी आक्रमणकारियों अंग्रेजो एवं मुस्लिम ने इनसे सम्बंधित समस्त जानकारियों को समाप्त करने का पूरा प्रयास किया परन्तु इस नगर के निवासी अभी भी उनकी वीरता और शासन नीति के लिए स्मरण करते है।
महाराजा तिलोकचंद्र सिंह अर्कवंशी
इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) पर अर्कवंशी महाराजाओ का शासन
महाराजा तिलोकचंद अर्कवंशी ने राजा विक्रमपाल को पराजित करके इंद्रप्रस्थ पर शासन किया , जिसके फलस्वरूप इनकी ९ पढियो ने इंद्रप्रस्थ पर शासन किया जो इस प्रकार है -
शासक वर्ष माह दिन
१- महाराजा तिलोकचंद अर्कवंशी ५४ २ १०
२- महाराजा विक्रमचंद अर्कवंशी १२ ७ १२
३ - महाराजा मानकचंद अर्कवंशी १० - ५
४ -महाराजा रामचंद अर्कवंशी १३ ११ ८
५ - महाराजा हरि चंद अर्कवंशी १४ ९ २४
६ - महाराजा कल्याण चंद अर्कवंशी १० ५ ४
७ - महाराजा भीमचंद अर्कवंशी १६ २ ९
८ - महाराजा लोकचंद अर्कवंशी २६ ३ २२
९ - महाराजा गोविन्द चंद अर्कवंशी २१ ७ १२
१० - महारानी भीमा देवी १ - -
और इनके बाद
सण्डीला निर्माता
महाराजा साल्हिय सिंह अर्कवंशी
और
मलिहाबाद निर्माता
महाराजा मल्हिय सिंह अर्कवंशी
अर्कवंश की प्रशाखा " भारशिव "
अर्कवंश की एक प्रशाखा है " भारशिव "। वैदिक काल में जिन अर्कवंशी राजाओ ने भगवान् शिव को प्रसन्न करके अपनी भक्ति से यह उपाधि पाई थी व्ही राजा भारशिव कहलाए । इन्होने भगवान् शिव को प्रसन्न करने करने के लिए अपने कंधो पर विशाल शिवलिंग धारण किया और तपस्या की इनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर इन भक्तवीरो को भारशिव उपाधि प्राप्त हुई । प्रतीक के स्वरुप में यह अपने गर्दन में शिवलिंग की माला धारण करते थे , भारशिव योद्धा इतने शसक्त थे की इन्होने दशाश्वमेघ यज्ञ भी किये थे ।
वैदिक काल तक भारशिव (अर्कवंश) से सम्बन्ध रखते थे परन्तु समय के साथ भारशिव योद्धा (नागवंश) से सम्बन्ध रखने लगे चूँकि नागवंश -सूर्यवंश की उपशाखा है जिस कारण इनमे वैवाहिक सम्बन्ध भी विद्यमान है स्वयं भगवान् श्री राम के ज्येष्ठ पुत्र कुश का विवाह नागवंश की राजकुमारी से हुआ था अतः भारशिव राजाओ के आराध्य देव भागवान शिव है और नागवंश के आराध्यदेव भी भगवन शिव है जिस कारण इन दोनो कुलो में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होने के कारण भारशिव की उपाधि को नागवंश के राजाओ ने आगे बढ़ाया इसी भारशिव के (नागवंश) में कई महान राजाओ ने जिनमे महाराजा भवनाग , महाराजा नवनाग आदि प्रसिद्ध है ।
इसी भारशिव के ( नागवंश ) में राष्ट्र रक्षक महाराजा सुहलध्वज भारशिव ने जन्म लिया और बहराइच के युद्ध में १,५०,००० (डेढ़ लाख ) से अधिक इस्लामी जिहादियों की गर्दन गाजर मूली की तरह काट डाली और सम्पूर्ण देश की रक्षा की यह युद्ध १०३४ ईस्वी में बहराइच में लड़ा गया था जिसमे १७ राजाओ ने महाराजा सुहलध्वज का साथ दिया था इस घटना का वर्णन मध्यकालीन ग्रन्थ जैमिनी में इसका उल्लेख है इस युद्ध के पश्चात विश्व में भारत के राजाओ का ऐसा आतंक व्याप्त हुआ था की अगले ३०० वर्षो तक किसी इस्लामी आक्रमणकारी ने भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं किया । इनके वैवाहिक सम्बन्ध वाकाटक वंश से थे और तत्कालीन राजवंशो से भी इनके वैवाहिक सम्बन्ध थे ।
सूर्यवंश सतयुग में इक्ष्वाकुवंश के नाम से जाना गया और त्रेतायुग में रघुवंश के नाम से जाना गया द्वापर युग में अपने मूलनाम सूर्यवंश से जाना गया और कलियुग में अर्कवंश के नाम से जाना गया और भविष्य में जाना जायेगा। जय सियापति राम चन्द्र की जय
महाराजा सुहेलदेव राजभर-क्षत्रिय थे....भर/राजभर ही भारशिवों के वंसज हैं....और त्रिलोकचंद भर राजा थे....आपने भरीं का इतिहास चुरा लिया है.
ReplyDeleteGhanta chura liya kisi se Bhar saale Dalit hai hai chamar hai saale pasi hai....sc...me aate hai
Deleteतेरी बहन का भोसड़ा म****** तेरी अम्मा तेरी बहन ने हम आए थे क्षत्रियों के तरफ से और रात भर दी थी बजाई थी तब जाकर दूध दल्ला पैदा हुआ था😂😂😂
DeleteChup Kar apni bakwaas apne Tak hi simit rakho Maharaja trilokchandra Arkavanshi the Hain aur rahenge jb dekho har kisi ka itihaas chura Kar apna banaane lg jaate ho aur Maharaja Suheldev rajbhar nahi balki Bhaarshiv the us samay k Bhaarshiv the jb Bhaarshiv Arkavansh k antargat aata tha kyonki Bhaarshiv ki Upadhi sarvpratham Arkavanshiyon be hi dharan ki thi aur uske baad ye Nagvanshiyon ne isliye dharan ki kyonki Suryavanshi aur Nagvanshiyon me vaivahik sambandh bahut purane the #MaharajaTrilokchandraArkavanshiKiJaiHo #MaharajaSuheldevBhaarshivKiJaiHo
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Deleteabe tu chup kar sutiye, pahle apne baare me padh le ki tu kya hai...lodu Arkvanshi matlab Arakh......aur Arakh matlab Pasi ki upjaati.....samjjhaa.....chala hai Raja banane..... Suar charane ki awkaat hai tum logon ki bas....raja bannane chale hain sutiye....
DeletePasi,Arakh dono sage bhai hain....Chor Chor mausere bhai.
bewakoof insaan, pata bhi hai Bharshiva kaun the.....sutiye.... pahle padh lo thoda....fir gyan chodana....Chidimaar, Baheliya..yahi pehchaan hai tum lhari.......Bhar Rajvansh ka ka itihaas churane ki aukaat nahi hai tumhari....pahle thoda itihaas padh lo...fir behas karne ki sochana.
Madarchod tu pakka wala Dalit hai pasiyo ki bhi had hoti hai ...bhosdi wale aapne aapko dekh pahile aaya hai kisi ko ulta shidha karne wala chutiya saala😆😆😆
DeleteHamara Itihaas chura Kar apna itihaas to bna loge par hamare jaisa vo Rakt Kahan se lekar aaoge beta just Bui tarah ka nasha karte ho chodd do aur chori karna bnd karo hamare itihaas ki
ReplyDelete#TilokchandraArkavanshi🚩
#महाराजात्रिलोकचंद्रअर्कवंशी🚩
100%Right
Deletekhadagvanshi kaha hai ve
ReplyDeleteYe khadagvanshi kaun hote Hain kaun see vansh se hote Hain kb utpatti Hui pahli baar khadagvanshi suna Hain
ReplyDeleteDusron ki Chhod, apni dekh...tu Pasiyon ki awlaad hai....sachhai ka saamna kar aur awkaat me rah....raja bananae ki nakaam koshish mat kar.
Deletele padh le apne baare me.....
https://www.indianetzone.com/8/arakh.htm
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Arakh tribes are a small caste of mainly cultivators and labourers. Arakh tribes are found in the provinces of Uttar Pradesh, Madhya Pradesh and Maharashtra. Arakh tribe is considered as an offshoot of Pasi.
Origin of Arakh Tribes
There are several legends related to the origin of Arakh tribes. History suggests that all their tradition associate them with the Pasis and Parasurama, incarnation of Vishnu. According to one legend, when Parasurama was taking a bath in the sea, a leech bit his bare foot and it started to bleed. Parasurama divided the blood into two parts and made Pasi out of one part and the Arakhs out of another. Other legend says that the Pasis were created out of the sweat of Parasurama. One day, when he was away, the Pasis shot some animals and they were cursed by a deity. This led to the degradation of the Pasis. Once, Parasurama sent for the help of the Pasis in one of his wars. But they hid in an arhar field and hence the name Arakh emerged.
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O bhosdiwale apni aukaat aur apni jaat ka tu yhan Rona mat to smjha Tere jaiso ko kitne maut k ghaat utaar chuka Hoon smjh fatey hua condom ki paidaish saalo dusron ka itihaas chura chura Kar to apni pothi Patra bna rhe ho ab dusre k baap ko apna baap banaana ye to koi tum bharo se puche jakar saalo paani bharo bhar chutiye smjha saale napunsakon ki aulad muhchodi karne ki aadat tumhari gyi nhi Hain itna pelunga ki ek ek baad ek bhar bhara Kar भर paida honge भर log khud paasi Hain to dusre ko bhi paasi samjhte Hain tum logo k liye to parshuram bhi pasi Hain saalo suar charao tum bhar log jakar paani bharo भर शूद्र जाति के लोग हैं। Ye sirf dusre samuday ka itihaas chura Kar apna bnate Hain aur apni dafli bajate rahte hai saalo ab nhi sudhre to gaand faat dhalunga tum bharon ki smjhe saalo भारशिव मात्र अर्कवंशी शासकों से जुड़ा है क्योंकि सबसे भारशिव की उपाधि धारण करने वाले ही अर्कवंशी थे। उसके बाद यह उपाधि नागवंश के लोगो को हस्तांतरित क दी गई क्योंकि सूर्यवंश और नागवंश में वैवाहिक संबंध उस काल खंड में हुआ करते थे। To bhosdiwalo smjhe bharo agar jyada bakwaas ki to saale Teri gardan kaat dhalunga smjha.
Delete#JaiMaharajaTrilokchandraArkavanshi
#Arkavanshi se fatne waalo ki than par comment dekhi jaa sakti Hain
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ReplyDeleteMy dear brother
ReplyDeleteBharshiw vansh is only bhar/rajbhar cast.
Bilkul bhi nhi भारशिव को शुरू ही अर्कवंशीयों ने किया था यह उपाधि हैं नाकी कोई वंश है समझे पहले तो आप यह समझिए कि वंश और उपाधि में जमीन और आसमान का अंतर है यह भारशिव की उपाधि नागवंश ने उस समय धारण की जब प्राचीन काल खंड में अर्कवंशी और नागवंशी में वैवाहिक संबंध स्थापित हुए। भारशिव उपाधि हजारों साल पुरानी है और भर राजभर ये क्या हैं ये तो अंग्रेजों के समय बनी हुई जाति हैं। पासी जाति तुम लोगो से संबंधित हैं और तुम्हे पूरा का पूरा अर्कवंश और परशुराम दिखाई देता है। वास्तविकता का सामना करना सीखो तुम लोगो बहुत इतिहास चोरी करना सीख गए हो।
Delete#जय अर्कवंशी
#JaiMaharajaTrilokchandraArkavanahi
#JaiMaharajaSalhiaSinghArkavanshi
Rajbhar Aur Akhawanshi ke purwaj ek the .ham unki peedi hai.
Delete🚩🚩𝕁𝔞𝔦 𝔖𝔯𝔦 ℝ𝔞𝔪🚩𝕁𝔞𝔦 𝔸𝔯𝔨𝕧𝔞𝔫𝔰𝕙🚩🚩
ReplyDelete🙏जय श्री राम🙏
ReplyDelete🚩जय सूर्यवंश जय सूर्यदेव जय☺🙏
सूर्यवंशी क्षत्रिय समाज💪💪💪
सालो तुम सब मादरचोद हो खुद का इतिहास तो पता नही बात करते है इतिहास चुराने की अगर है औकात तो बताओ अपने से 11
Deleteपीढी ऊपर के नाम........ साले कुत्तों की तरह लड़ रहे है
Plz mere ko koi btaa sktaa hai ki AARKHVANSHI kyaa hoote hai aur unka kaam kyaa hoota hai
ReplyDeleteKya kaam krte theee
Plz mere ko koi btaa sktaa hai ki AARKHVANSHI kyaa hoote hai aur unka kaam kyaa hoota hai
ReplyDeleteKya kaam krte theee
Plz thoda jldi btana jruri hai bhailog
हिंदी में सूर्यवंशी और सूर्यवंशी का ही पर्यायवाची शब्द अर्कवंशी होता है तो अर्कवंशी क्षत्रिय समाज के लोग पासी समाज एवं दलितों की मां बहन चोदते थे पहले के जमाने में लेकिन आज भले ही आर्थिक स्थिति कमजोर है लेकिन धीरे-धीरे फिर दलितों की और पासियो की मां चोदने के लायक बन जाएंगे जय मां भवानी जय श्री राम जय राजपूताना
Deleteजय राजपुताना
DeleteAkhir aap dono pasi cast par hi bahas q kar rahe ho . Arakh bhar ko pasi khata h. Bhar arakh ko pasi kahata h. Mere bhaeyo yahi aakar amari soch chhoti ho jati h. Bhut peeche johe to paoge ki aap log pasi cast se hi rileted ho. Rhi bat suvar charane ki to ye ek vyapar h jisko jaha jo shi lga usne us kam ko apna liya. Jaise mirzapur me khitk suvar rakhte h west up me walmeeki palte h . Rhi bat pasi ki to kuch pasi bhi palte h. But aap dono pasiyo ki subcasts h. Mai bhi pasi hu. Hamre poorvajo ne hme btaya ki hum nagavanshi h. Matalb khi n khi sabhi daliya kisi ek tane se hi nkli h. . Mera manana hai aap log education par jyada phokas kro jo bhavis me kam aayega please aaps me gali n de. Aap sab bhai bhai h. Please kisi ko apsabd n khe... Mai up police me karyrat hu. .........Dhanyvad
ReplyDeleteहम पासी समाज को इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पासी समाज पहले रंडी खाना का ठेका ले रखा था और हम राजपूतों से पासी समाज की मां बहने चूत मरवाती रहती थी वह आज उनके ही रंडियों के बच्चे पासी समाज की स्थापना कर दी और वही आज के लोग अपने आप को सूर्य वीर सूरमा समझते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि राजपूत पासियों के तुम सबके बाप हैं
DeleteJay ho arkvansi
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